एम.एस. क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अंत:स्रावीग्रंथि विकार अनुसंधान संस्‍थान, जयपुर

संस्थान के बारे में

म. शे. क्षेत्रीय आयुर्वेद अन्तःस्रावीग्रंथि विकार अनुसंधान संस्थान (आर.ए.आर.आई.ई.डी.), जयपुर अधीनस्थ केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् (सीसीआरएएस), आयुष मन्त्रालय, भारत सरकार की प्रारम्भिक स्थापना क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान (आयुर्वेद) के रूप में 1 अप्रेल 1972 को हुई, जो परिषद् की इकाईयों के पुनर्गठन के तहत 11 अक्टूबर 1999 को केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान (आयुर्वेद) के रूप में क्रमोन्नत किया गया एवं 2010 में आयुर्वेद केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान के रूप में पुनर्नामित किया गया और हाल ही अप्रेल 2016 में म. शे. क्षेत्रीय आयुर्वेद अन्तःस्रावी विकार अनुसंधान संस्थान (आर.ए.आर.आई.ई.डी.) के रूप में पुनर्नामान्तरित किया गया। संस्थान के पास स्वास्थ्य रक्षा एवं अनुसंधान गतिविधियों की सुविधा के लिए उच्चस्तरीय विकास में समर्थ स्वयं का त्रितलीय भवन है। इस संस्थान द्वारा अपनी स्थापना के बाद से कईं अध्ययन किये गये हैं। चिकित्सीय अनुसंधान के अन्तर्गत संस्थान ने मलेरिया, आमवात, तमकश्वास, अपस्मार, लोहक्षय जनित पाण्डु, श्वेतप्रदर आदि अध्ययन संचालित किये गये हैं। प्रजनन बाल स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम (आरसीएच) के अन्तर्गत संचालित शिशु अतिसार, कास और बालदौर्बल्य (कुपोषण) पर परीक्षण संचालित किये गये हैं। इसके अतिरिक्त 1978-2007 के दौरान यह संस्थान परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत संलग्न रहा। संस्थान में नियमित रूप से ओपीडी, आईपीडी और संस्थान में जारी विभिन्न अनुसंधान कार्यक्रमों अर्थात एसआरपी, एससीएसपी, टीएचसीआरपी के द्वारा चिकित्सा स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार भी किया जा रहा है। संस्थान ने आयुष (आयुर्वेद) का कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग एवं स्ट्रोक के रोकथाम व नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के साथ एकीकरणनामक एक पायलट (प्रायोगिक) परियोजना आरम्भ की है।

अधिदेश—

संस्थान ने केन्द्रित अधिदेश से अन्तःस्रावी विकारों पर जीवनशैली सम्बन्धित और असंचारी विकारों पर प्रभावी औषधियों को स्थापित करने के लिए चिकित्सीय अनुसंधान निश्चित किया है। इसने अन्य गतिविधियों को भी सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित सेवायें संचालित कर रखी हैं।

·       बहिरंग विभाग और अन्तरंग विभाग के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल सेवायें।

·       जरा स्वास्थ्य देखभाल के लिए विशेष क्लिनिक।

·       आदिवासी स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान कार्यक्रम।

·       बाह्य पहुँच की गतिविधियाँ यथा— स्वास्थ्य रक्षण कार्यक्रम (एस.आर.पी.), आयुर्वेद चल स्वास्थ्य रक्षा कार्यक्रम, आयुष (आयुर्वेद) का कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग एवं स्ट्रोक के रोकथाम व नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के साथ एकीकरण।

गतिविधियाँ—

वर्तमान में संचालित चिकित्सीय अनुसंधान परियोजनाएँ—

1.     लोह-अल्पता जनित रक्ताल्पता के प्रबन्धन में नवायस चूर्ण का चिकित्सीय मूल्यांकन

2.     प्राथमिक उच्चरक्तचाप के प्रबन्धन में रुद्राक्ष चूर्ण का चिकित्सीय मूल्यांकन

3.     आयुर्वेदिक कोडेड औषध ‘आयुष-ए’ का मृदु तमकश्वास रोग के प्रबन्धन में बहुकेन्द्रीय प्लेसिबो नियन्त्रित चिकित्सीय अध्ययन

4.     आयुर्वेद, सिद्ध एवं यूनानी औषधियों के लिए राष्ट्रीय भेषज सतर्कता कार्यक्रम

5.     आदिवासी स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान कार्यक्रम - आदिवासी उपयोजना के अन्तर्गत (टीएचसीआरपी)

6.     आयुर्वेद चल स्वास्थ्य रक्षा कार्यक्रम -  अनुसूचित जाति उपयोजना के अन्तर्गत (एससीएसपी)

7.     चल स्वास्थ्य सेवाओं के द्वारा स्वास्थ्य रक्षण कार्यक्रम (एसआरपी)

8.     आयुष (आयुर्वेद) का कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग एवं स्ट्रोक के रोकथाम व नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के साथ एकीकरण

संस्थान के पास आम जनता के लिए निम्नलिखित सुविधायें उपलब्ध हैं।

·       बहिरंग विभाग (ओपीडी)

·       जरा चिकित्सा ओपीडी

·       पंचकर्म इकाई

·       20 शय्याओं की अन्तरंग सुविधायें (आईपीडी)

·       प्रयोगशाला सुविधायें (जैवरासायनिक और विकृतिविज्ञानीय जाँच)

·       क्ष-किरण सुविधायें

·       पुस्तकालय (आयुर्वेदीय और आधुनिक चिकित्सा की पुस्तकों से युक्त)

उपलब्धियाँ—                 

चिकित्सीय अनुसंधान— संस्थान ने अपने आरम्भ से अनेक चिकित्सीय अध्ययन किये हैं; उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण अधोलिखित है।

1.     मलेरिया पर आयुष-64 का बहुकेन्द्रीय चिकित्सीय अध्ययन (1980-2000)

2.     अपस्मार के प्रबन्धन में कोडेड औषध आयुष-56 की चिकित्सीय प्रभावकारिता का मूल्यांकन (1981-1985)

3.     तमकश्वास के प्रबन्धन में शोधन चिकित्सा रहित शिरीषत्वक् क्वाथ की चिकित्सीय प्रभावकारिता का मूल्यांकन (2000-2008)

4.     मौखिक गर्भनिरोधक के रूप में चिकित्सीय प्रभावकारिता का मूल्यांकन (2000-2007) – परिवार कल्याण चिकित्सीय अनुसंधान कार्यक्रम के अन्तर्गत

5.     लोह-अल्पता जनित रक्ताल्पता में धात्रीलोह पर बहुकेन्द्रीय खुला चिकित्सीय अध्ययन (2007-2009)

6.     स्टेज III और IV नोन स्माल सेल लंग कैंसर में कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए “आयुष क्यूओएल 2सी” (आयुर्विदिक कोडेड औषध) – एक रेण्डमाइज्ड फेज II साध्यता और सहनशीलता अध्ययन (2010-2013)

7.     लोह-अल्पता जनित रक्ताल्पता के प्रबन्धन में पुनर्नवादि मण्डूर और दाडिमादि घृत का चिकित्सीय मूल्यांकन (2011-2012)

8.     तमकश्वास के प्रबन्धन में व्याघ्री हरीतकी का चिकित्सीय मूल्यांकन (2011-2012)

9.     टाइप II डायबिटीज मेलाइटिस के प्रबन्धन में सप्तविंशतिक गुग्गुलु और हरिद्रा चूर्ण का चिकित्सीय मूल्यांकन (2011-2012)

10.  कष्टार्तव में रजःप्रवर्तनी वटी का बहुकेन्द्रीय खुला चिकित्सीय अध्ययन (2011-2012)

11.  आमवात प्रबन्धन में वातारि गुग्गुलु, रास्नासप्तक कषाय और बृहत् सैन्धवादि तैल का चिकित्सीय मूल्यांकन  (2013-2015)

12.  जीर्णकास के प्रबन्धन में वासावलेह का चिकित्सीय मूल्यांकन (2014-2016)

13.  तमकश्वास के प्रबन्धन में कनकासव एवं त्रिवृत् चूर्ण का चिकित्सीय मूल्यांकन (2014-2016)

प्रलेखन अनुसंधान— आयुर्वेद एवं सिद्ध की वेक्टर जनित रोगों की चिकित्सा के प्रतिवेदित प्रकरणों का प्रलेखन (2008-2010)

वानस्पतिक अनुसंधान— संस्थान ने गुग्गुलु फार्म हाउस, मागलियावास, अजमेर में गुग्गुलु के बीजांकुरण की नई तकनीक को विकसित किया।

अनुसंधान प्रकाशन— संस्थान ने राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में चिकित्सीय अनुसंधान, द्रव्य अनुसंधान एवं आयुर्वेदीय साहित्यिक अनुसंधान पर बहुत से शोधपत्र प्रकाशित किये हैं। आयरन डेफिसियेन्सी एनेमिया (लोह अभावजन्य रक्ताल्पता) एवं संक्रमणजन्य व्याधियों के प्रलेखों पर अनुसंधानिक निबन्ध के लिए विशिष्ट सहयोग किया है।

राष्ट्रीय अभियान— संस्थान ने 2009 में “आयुर्वेद के द्वारा रक्ताल्पता, गुद-मलाशय व्याधियों की रोकथाम, जरा चिकित्सा, जीर्ण रोगों एवं मातृ-शिशु स्वास्थ्य रक्षा” पर राज्य/जिला स्तर का राष्ट्रीय अभियान आयोजित किया है। इस कार्यक्रम में संस्थान ने आयरन डेफिसियेन्सी एनेमिया (लोह अभावजन्य रक्ताल्पता) के रोगियों को सम्बन्धित जिलों में चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए 35 आयुर्वेद एवं एलोपेथी के चिकित्सालय निर्धारित किये हैं।

संगोष्ठी एवं कार्यशाला— संस्थान ने अधोलिखित संगोष्ठियों/कार्यशालाओं का आयोजन किया।

1.     दिनांक 27 मार्च 2010 को “आयुर्वेद में आहार सम्बन्धित अनुसंधान की आवश्यकता एवं तत्सम्बन्धी एक उत्कृष्ट केन्द्र की स्थापना के लिए आवश्यक आधारभूत संरचना” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

2.     दिनांक 29 मार्च 2014 को नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, केन्द्रीय कार्यालय, जयपुर के साथ “राजभाषा कार्यान्वयन – समस्यायें एवं समाधान” विषयक हिन्दी कार्यशाला का आयोजन किया गया।

3.     दिनांक 19 मार्च, 2016 को नराकास (के-1) एवं राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर के संयुक्त सहयोग से “राजभाषा हिन्दी के प्रसार में व्यावहारिक समस्यायें एवं समाधान” विषयक हिन्दी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

संपर्क विवरण— 

डॉ. एच. एम. एल. मीणा अनुसंधान अधिकारी (आयुर्वेद), एस-3, प्रभारी

म. शे. क्षेत्रीय आयुर्वेद अन्तःस्रावीग्रंथि विकार अनुसंधान संस्थान (आर.ए.आर.आई.ई.डी)

इन्दिरा कॉलोनी, बनी पार्क, झोट्वाड़ा रोड़, जयपुर-302016

फोन— 0141-2281812

फेक्स— 0141-2282618

ई-मेल— acri.jaipur@gmail.com, acri-jaipur@gov.in