परिचय
‘‘सोवा-रिग्पा’’ को सामान्यतः आमची चिकित्सा पद्धति के रूप में जाना जाता है, जो कि विश्व की प्राचीनतम, जीवंत एवं सुप्रलेखित चिकित्सीय परंपरा में से एक है। इस पद्धति का तिब्बत, मंगोलिया, भूटान, चीन के कुछ क्षेत्रों, नेपाल, भारत के हिमालयी क्षेत्रों और पूर्व सोवियत संघ के कुछ क्षेत्रों में लोकप्रिय रूप से अभ्यास किया गया है। इस चिकित्सा परंपरा की उत्पत्ति के विषय में भिन्न-भिन्न विचार हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह भारत से उत्पन्न हुई है, कुछ लोग कहते हैं कि चीन से और अन्य लोग इसे तिब्बत से उत्पन्न मानते हैं। सोवा रिग्पा के अधिकांश सिद्धांत एवं अभ्यास ‘‘आयुर्वेद’’ के समान है। तिब्बत पर प्रथम आयुर्वेदीय प्रभाव ईसा पश्चात् तीसरी शताब्दी के दौरान आया था लेकिन तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रवेश के साथ सातवीं शताब्दी के बाद ही यह लोकप्रिय हुआ। तत्पश्चात्, बौद्ध धर्म एवं अन्य भारतीय कला व विज्ञान के साथ साथ भारतीय चिकित्सा साहित्य के निर्यात की यह प्रवृत्ति 19वीं शताब्दी के आरंभ तक निरन्तर रही। बुद्ध एवं बौद्ध धर्म की जन्मस्थली होने के कारण भारत तिब्बती छात्रों के लिए बौद्ध कला एवं संस्कृति के अध्ययन हेतु सदैव ही लोकप्रिय स्थान रहा है; कई भारतीय विद्वानों को भी बौद्ध धर्म और अन्य भारतीय कला और विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए तिब्बत में आमंत्रित किया गया । भारत के साथ इस दीर्घकालीन सहयोग के परिणाम स्वरुप विभिन्न विषयों जैसे- धर्म, विज्ञान, कला, संस्कृति एवं भाषा इत्यादि के हजारों भारतीय साहित्य का तिब्बती भाषा में अनुवाद और संरक्षण हुआ। इनमें से चिकित्सा से संबंधित लगभग पच्चीस पुस्तकें तिब्बती सहित्य के उल्लिखित और अनुल्लिखित दोनों रूपों में भी संरक्षित हैं। इनमें से कई पुस्तकें तिब्बत में पड़ोसी देशों के ज्ञान व कौशल और उनके स्वयं के संजातीय ज्ञान से और अधिक समृद्ध हुई । ‘‘सोवा रिग्पा’’ (चिकित्सा विज्ञान) इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस चिकित्सा का मौलिक ग्रन्थ ग्युद-जी (चार तंत्र) का पहले भारत से अनुवाद किया गया और तिब्ब्त में अपने स्वयं के लोकसाहित्य तथा चीनी एवं फारसी आदि अन्य चिकित्सा परंपरा के साथ समृद्ध किया गया । बौद्ध धर्म एवं अन्य तिब्बती कला व विज्ञान के साथ सोवा-रिग्पा का प्रभाव पड़ोसी हिमालयी क्षेत्रों में फैला। भारत में इस पद्धति का सिक्क्मि, अरूणाचल प्रदेश, दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल), लाहौल एवं स्पीति (हिमाचल प्रदेश) तथा जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र आदि में अभ्यास किया गया है।
सिद्धांत एवं अभ्यास
सोवा रिग्पा जुंग-वा-न्गा (संस्कृत- पंचमहाभुत) एवं न्गेपा-सुम (संस्कृत- त्रिदोष) के सिद्धांतों पर आधारित है। ब्रह्मांड के सभी जीवित प्राणियों का शरीर एवं निर्जीव वस्तुए जुंग-वा-न्गा से बनी हुई है; जैसे स, चू, मे, लंग एवं नाम-खा (संस्कृत – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश)। इस पद्धति की शरीर क्रिया विज्ञान, विकृति विज्ञान, भैषजगुण विज्ञान एवं मेटरिया-मेडिका इन सिद्धांतों पर आधारित है। हमारा शरीर जुंग-वा-न्गा के इन पांच भौतिक तत्वों से निर्मित है; जब इन तत्वों का अनुपात हमारे शरीर में असंतुलित हो जाता है तो परिणामस्वरूप हमारे शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते है। विकारों की चिकित्सा के लिए उपयोग की जाने वाली औषधि एवं आहार भी इन्ही पांच भौतिक तत्वों से निर्मित होते हैं। शरीर में ये तत्व न्गेपा-सुम (संस्कृत- त्रिदोष) लस-संग-दुन (संस्कृत: सप्त धातु) एवं ड्री-मा-सुम (सस्कृत: त्रिमल) के रूप में उपस्थित है। औषधि, भोजन एवं पेय में ये रो-दुग (संस्कृत: रस), नस-पा (संस्कृत: वीर्य), योन्तन (संस्कृत: गुण) एवं झु-जेस (संस्कृत: विपाक) के रूप में विद्यमान रहते हैं। इस सिद्धांत के संदर्भ में यह है कि एक चिकित्सक एक रोगी के उपचार में पांच तत्वों की समानता एवं विषमता (संस्कृत: सामान्य एवं विशेष) के सिद्धांत का उपयोग करते हुए अपने ज्ञान, अनुभव एवं कौशल का प्रयोग करेगा।
सोवा-रिग्पा के मूल सिद्धांत को निम्नलिखित पांच बिन्दुओं के संदर्भ में छायांकित किया जा सकता है:
· रोग में शरीर उपचार के अधिष्ठान के रूप में
· प्रतिकारक, अर्थात उपचार
· प्रतिकारक के माध्यम से उपचार की विधि
· चिकित्सा जो रोग का उपचार करती है
· मेटेरिया मेडिका, फार्मेसी एवं भैषजगुणविज्ञान
प्रशिक्षण एवं शिक्षा
परंपरागत रूप से, पारंपरिक शिक्षा पद्धति के अंतर्गत या तो गुरू-शिष्य परम्परा के अधीन या परिवारों में ग्युद-पा (वंश परम्परा) पद्धति के अधीन जिसमें पीढ़ियों से ज्ञान पिता से पुत्र को हस्तांतरित किया जाता है, आमची को प्रशिक्षित किया जाता है। कुशल आमची बनने में अनेकों वर्ष लग जाते हैं जिसमें कठिन सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। अपने प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद, उसको आमची उपाधि प्रदान करने के लिए, प्रशिक्षु आमची को एक समारोह में पूरे समुदाय के समक्ष कुछ विशेषज्ञ आमचियों की उपस्थिति में परीक्षा देनी होती है। भूतकाल में उच्चतर प्रशिक्षण के लिए, भारतीय हिमालयीय क्षेत्र के वे लोग भी प्रतिष्ठित विद्वानों के पास या तिब्बत के किसी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिए जाते थे । इन क्षेत्रों से कुछ व्यक्तियों ने अपनी सोवा-रिग्पा शिक्षा प्रारंभ करने के लिए तिब्बत जाना पसंद किया था ।
आधुनिक सामाजिक एवं शिक्षा पद्धति को देखते हुए, कुछ संस्थान सीमित अवधि के अंतर्गत शिक्षा पूर्ण करने के सन्दर्भ में आधुनिक पद्धति के समकक्ष शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान में, 10+2 उत्तीर्ण करने के पश्चात्, छात्रों का चयन प्रवेश परीक्षा वरीयता के आधार पर किया जाता है। इस छ: वर्षीय पाठ्यक्रम का नाम, तिब्बती चिकित्सा पद्धति में स्नातक (बीटीएमएस) या आमची चिकित्सा आचार्य है। वर्तमान में यह पाठ्यक्रम भारत में निम्नलिखित चार संस्थानों में संचालित किया जाता है:
1. केन्द्रीय बौद्ध अध्ययन संस्थान, लेह (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन)
2. तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान, परम पावन दलाई लामा की धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश
3. केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ, उत्तर प्रदेश (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन)
4. चोकपोरी चिकित्सा संस्थान, दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल)
भारत में सोवा रिग्पा की आधारभूत संरचना
अधिकांश हिमालयीय क्षेत्रों के प्रत्येक गाँव में समुदायिक सहयोग के साथ एक आमची के द्वारा पारंपरिक रूप से सोवा-रिग्पा का अभ्यास किया जाता है। किन्तु पिछले दो दशकों से, शैक्षणिक संस्थानों, चिकित्सालयों, अस्पतालों एवं फार्मेसियों आदि में आधुनिक अस्पताल पद्धति के कुछ प्रशासनिक तत्वों को अपनाते हुए यह परिदृश्य परिवर्तित हो रहा है। फिर भी, भारत में अभी सोवा रिग्पा के लगभग 1000 चिकित्सक, दुर्गम हिमालयीय क्षेत्रों एवं अन्य स्थानों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। भारत में सोवा रिग्पा संस्थानों के मुख्य केन्द्र हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला एवं जम्मू व कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र हैं। भारत में आश्रय लेने के पश्चात् परम पावन दलाई लामा धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में रहें हैं, जहां उन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित करने एवं सोवा रिग्पा के माध्यम से एवं उत्तम स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने हेतु तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान की स्थापना की है। इस संस्थान में एक मेडिकल कॉलेज, फार्मेसी, ज्योतिष विभाग और पूरे भारत में 40-50 क्लीनिकों की एक श्रृंखला है। भारत में सोवा-रिग्पा के चिकित्साभ्यास को विनियमित करने के लिए धर्मशाला में केंद्रीय तिब्बती चिकित्सा परिषद् है, यह परिषद् चिकित्सकों के पंजीकरण, महाविद्यालयों के मानक और सोवा-रिग्पा को विनियमन की अन्य क्रियाविधियों का कार्य करती है।