संस्थान की पृष्ठभूमिः
सन 1972 मार्च को आंचलिक आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान की स्थापना किया गया और सन 1979 को एमसीआरयु, भुवनेश्वर, एसएमपीयु, बलांगिर एवं सीआरयु, पुरी का समामेलन से केन्द्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान की स्थापना हुई, और सन 2009 में इस संस्थान को राष्ट्रीय आयुर्वेदिक औषधी विकास अनुसंधान संस्थान नाम से पुनः प्रतिष्ठा किया गया । मई 2016 में फिर इस संस्थान का नाम की संशोधित किया गया है जो वर्तमान केन्द्रीय आयुर्वेद यकृत विकार अनुसंधान संस्थान के रुप में है । फरवरी 2012 से भरतपुर स्थित 3 एकर जमिन पर बने मकान में वर्तमान यह संस्थान कार्य कर रहा है ।
अधिदेश:
आतुरीय अनुसंधान मुख्यता यकृत विकार
अन्य गतिविधियाः
· बहिरंग रोगी विभाग एवं अंतरंग रोगी विभाग के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएं ।
· आदिवासी स्वास्थ्य रक्षा अनुसंधान ।
· वृद्धावस्था स्वास्थ्य हेतु विशेष क्लिनिक ।
· पंचकर्म की विशेष सुविधाएँ ।
· बाह्य गतिविधियां जैसे स्वास्थ्य रक्षा कार्यक्रम आदि ।
आधारिक संरचनाः
इस संस्थान में 50 शया विशिष्ट दोनों पुरूष एवं महिला रोगी के लिए अंतरंग विभाग, बहिरंग विभाग, औषध वितरण केन्द्र, गुदरोग के लिए मीनी प्रयोगशाला, मीनी औषध प्रयोगशाला, प्रदर्शित वनौषधी वगिचा है ।
गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ
चलरही अनुसंधान परियोजना/कार्यक्रम
I. व्योषादि गुग्गुलु एवं पंचसम चूर्ण का आमवात पर चिकित्सकीय मूल्यांकन
II. मामज्जक घनवटी द्वारा मधुमेह पर चिकित्सकीय मूल्यांकन
III. आदिवासी स्वास्थ्य रक्षण अनुसंधान परियोजना (पुरा ओडिशा राज्य)
IV. स्वास्थ्य रक्षण कार्यक्रम
V. आयुर्वेद मोवाईल स्वास्थ्य रक्षा कार्यक्रम के तहत अनुसूचित जाति उप-योजना
इसके अतिरिक्त हिन्दी पाखवाडा, सर्तकता जागरुक्ता सप्ताह, कैंसर जागरुक्ता कार्यक्रम, स्वच्छ भारत अभियान आदि कार्यक्रम संस्थान में आयोजित किया जाता है
विगत 5 वर्ष में कुछ मुख्य उपलब्धियाः
1. बहिरंग रोगी विभाग – 91329 रोगियों को चिकित्सा प्रदान किया गया है
2. अंतरंग रोगी विभाग - 1798 रोगियो को चिकित्सा प्रदान किया गया है ।
3. पांच आतुरीय अनुसंधान परियोजनाओं यथा टाइप टु मधुमेह, लौह हीनता आनिमिया, ब्रह्म रसायन एवं 3 आमवात परियोजनाओं का अध्यन पूर्ण किया गया ।
1) गुद रोग के लिए क्षारसूत्र चिकित्सा उपलब्ध है । पिछला 2 वर्ष में कुल 5491 रोगियों नें क्षारसूत्र चिकित्सा सेवा प्राप्त कियें है । इनमे से 2274 रोगी भगंदर, 1496 रोगी परीकर्त्तिका,1399 रोगी अर्श एवं 322 अन्य गुद जनित विकार हैं ।
2) 32869 पंचकर्म क्रियाविधि उभय अंतरंग रोगी विभाग एवं बहिरंग रोगी विभाग में संधिवात, शिरशुल, आमवात, पक्षाघात आदि रोगी को चिकित्सा प्रदान किया गया ।
3) विभिन्न त्वकगत विकार जैसा विचर्चिका, सोरियासिस, रक्तवह स्रोतस् गत रोग श्वित्र आदि रोग का चिकित्सा किया जाता है ।
संपर्क विवरणः
पताः केन्द्रीय आयुर्वेद यकृत विकार अनुसंधान संस्थान, भरतपुर, कलिंग स्टुडिय निकटस्थ, भुवनेश्वर- 751029, दूरभाषा/फाक्स न.0674-2387702 EPBX-200
ईमेलः nriadd-bhubaneswar@gov.in