आयुर्वेद में अनुसंधान

केन्‍द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् (सीसीआरएएस) आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन ए‍क स्‍वायत्‍त निकाय है, जो आयुर्वेदीय विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक स्‍तर पर अनुसंधान को आरंभ करने, समन्‍वय स्‍थापित करने, गठन, विकास एवं प्रचार हेतु भारत में एक शीर्ष निकाय है। आयुष मंत्री, भारत सरकार परिषद् के शासी निकाय के पदेन अध्‍यक्ष होते हैं, जबकि संयुक्‍त सचिव स्‍थायी वित्‍त समिति‍ के अध्‍यक्ष होते हैं। वैज्ञानिक/अनुसंधान कार्यक्रम, वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड एवं वैज्ञानिक सलाहकार समूह के द्वारा संचालित/पर्यवेक्षि‍त किए जाते हैं।

परिषद् अपने अनुसंधान कार्यक्रम 30 परि‍धीय संस्‍थानों/केन्‍द्रों/एककों के माध्यम से अनुसन्धान के नियंत्रण, जांच एवं पर्यवेक्षण के लिए उत्‍तरदायी दिल्ली स्थित मुख्‍यालय के साथ क्रियान्‍वि‍त करती रही है। परिषद् का अनुसंधान कार्य 792 अधि‍कारियों एवं कर्मचारियों द्वारा निष्‍पादित किया जाता है जबकि अधि‍कारियों एवं कर्मचारियों की स्‍वीकृत संख्‍या 1983 है तथा विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों, अस्‍पतालों एवं संस्‍थानों के साथ सहयोगी अध्ययन के माध्यम से भी अनुसंधान कार्य किया जाता है।

अनुसंधान के व्‍यापक क्षेत्र निम्‍न हैं-

  • आतुरीय अनुसंधान
  • मौ‍लिक अनुसंधान
  • भेषजगुण विज्ञान अनुसंधान (पूर्व आतुरीय सुरक्षा/विषाक्‍तता एवं जैव वैज्ञानिक गतिविधियों का अध्‍ययन)
  • औषधीय पादप अनुसंधान (चिकि‍त्‍सा-प्रजाति वानस्‍पतिक सर्वेक्षण, कृषिकरण, भेषजगुण अभिज्ञानीय) एवं औषधि‍ मानकीकरण अनुसंधान
  • साहित्‍यि‍क अनुसंधान एवं प्रलेखन

विस्‍तृत/व्‍यापक गतिविधि‍यों के अंतर्गत आदिवासी स्‍वास्‍थ्‍य सेवा अनुसंधान कार्यक्रम, स्‍वास्‍थ्‍य रक्षण कार्यक्रम, अनुसूचित जाति उप योजना (एससीएसपी) के अंतर्गत आयुर्वेद मोबाइल स्‍वास्‍थ्‍य सेवा कार्यक्रम; कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग एवं आघात (स्‍ट्रोक) के रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्‍ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के साथ आयुष (आयुर्वेद) का एकीकरण और सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईईसी) इत्‍यादि सम्मिलित है।

 

सीसीआरएएस की कुछ उपलब्‍ध‍ियां

  • आतुरीय अनुसंधान:

विभिन्‍न रोगों/आतुरीय अवस्थाओं यथा- भगंदर, अपस्मार, श्लीपद, हृदय संबंधी रोग, पक्षाघात, विषमज्‍वर, स्थौल्य एवं मेदो रोग, अर्धांग/सर्वांग घात, आमशयिक व्रण, गृध्रसी, मूत्राश्मरी, मानस रोग, तमक श्वास, जीर्ण कास, मानस मन्दता, शुष्काक्षी पाक, एलर्जिक नेत्रश्लेष्मलाशोथ, मेदो व्याधि, उच्च रक्तचाप, संग्रहणी, पांडु रोग, रजोनिवृत्ति लक्षण, सन्धिवात, स्थौल्य, अस्थिक्षय/अस्थिसौषिर्य, आमवात, रसायन, कष्टार्तव, मधुमेह, किटिभ, सामान्य मनोद्वेग, रक्तार्श, बहुग्रंथीय डिंबग्रंथि लक्षण (पी.सी.ओ.एस.), गर्भाशय अर्बुद, कम्‍प्‍यूटर विजन सिंड्रोम, वातरक्त आदि रोगों के लिए औषध योगों का विकास एवं वैधीकरण करना। प्रजननकारी एवं शिशु स्‍वास्‍थ्‍य रक्ष (आरसीएच) कार्यक्रम के लिए 17 आयुर्वेदिक औषध योगों का भी विकास किया गया है| परिषद् प्रतिष्ठित संस्‍थानों के सहयोग से कुछ रोगों/रोगावस्थाओं यथा- कैंसर रोगियों की जीवन गुणवत्‍ता में सुधार, मानस रोग, वृद्धावस्था स्‍वास्थ्‍य पर आतुरीय अनुसंधान कर रही है।

  • मौलिक अनुसंधान:

शारीर-प्रकृति के निर्धारण एवं स्‍वास्‍थ्‍य व रोग के मापदंडों के साथ इसकी संबद्धता हेतु एक मानकीकृत प्रश्‍नावली के विकास के लिए कदम उठाए गए हैं।

  • भेषजगुण विज्ञान अनुसंधान:

लगभग 400 आयुर्वेदिक औषधियों‍/औषधयोगों का भेषजगुणात्मक अध्‍ययन एवं 50 से अधि‍क आयुर्वेदिक औषधि‍यों/औषधयोगों की सुरक्षा/विषाक्‍तता अध्‍ययन किया गया।

  • औषधीय पादप अनुसंधान (चिकित्‍सा-प्रजाति वानस्‍पतिक सर्वेक्षण, कृषिकरण, भेषजगुण अभिज्ञानीय) एवं औषधि‍ मानकीकरण अनुसंधान:

चिकित्‍सा-प्रजाति वानस्‍पतिक सर्वेक्षण के अंतर्गत प्रमुख वन विभागों के कुछ भागों का सर्वेक्षण किया गया। परिषद् 1,20,000 से अधि‍क पादप प्रजातियों का वनस्‍पति संग्रहालय के रूप में संरक्षण कर रही है एवं संग्रहालय के लिए लगभग 5,000 अपरिष्कृत औषधि‍ नमूनें एकत्रित किये गये। चिकित्‍सा-प्रजाति वानस्‍पतिक सर्वेक्षण से लगभग 2,500 लोक दावें एकत्रित किए गए एवं 14 पुस्‍तकें प्रकाशित की गई। 400 एकल औषधि‍यों का भेषजगुण अभिज्ञानीय अध्‍ययन, 220 औषधि‍यों का पादप रसायन अध्‍ययन, 889 एकल औषधियों‍ (नमूने) एवं 623 औषधयोगों (नमूनों) का भौतिक रसायन स्थिरांक किया गया।

  • साहित्‍यि‍क अनुसंधान:

साहित्‍यि‍क अनुसंधान कार्यक्रम के अंतर्गत प्राचीन पांडुलिपियों/दुर्लभ पुस्‍तकों से ग्रन्‍थों का पुनरुद्धार एवं पुनर्प्राप्ति, शास्त्रीय ग्रंथों से औषधियों एवं रोगों से संबंधित संदर्भों का संग्रह और संकलन, शब्‍दकोष सम्बन्धी कार्य, आयुर्वेद और अन्य चिकित्सा पद्धतियों से संबंधित समकालीन साहित्य और प्रकाशन का कार्य आगे बढ़ाया गया है। परिषद् ‘‘आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान पत्रिका’’, ‘‘आयुर्वेदीय विज्ञान औषधि अनुसंधान पत्रिका’’ एवं ‘‘भारतीय चिकित्‍सा संपदा पत्रिका’’ प्रकाशित कर रही है। अभी तक लगभग 235 पुस्‍तकें, विशेष निबंध (मोनोग्राफ), तकनीकी प्रतिवेदनों इत्‍यादि के प्रकाशन के अतिरिक्‍त जनसामान्‍य में आयुर्वेद के प्रचार प्रसार हेतु सूचना-शिक्षा-संचार (आईईसी) सामग्री जैसे विवरणिका, पुस्तिकाएं आदि का प्रकाशन किया गया है।

  • आयुष अनुसंधान पोर्टल:

आयुष मंत्रालय, भारत सरकार समस्‍त विश्‍व में आयुष पद्धतियों के गुणों का प्रचार प्रसार करना चा‍हता है। वेब आधारित आयुष अनुसंधान पोर्टल की शुरूआत इन पद्धतियों से संबंधित सूचनाओं यथा- साक्ष्‍य आधारित अनुसंधान आंकड़ों को दर्शाने के लिए की गई है। सीसीआरएएस मुख्‍यालय एवं राष्‍ट्रीय भारतीय चिकित्‍सा संपदा संस्‍थान (एनआईआईएमएच), हैदराबाद, राष्‍ट्रीय सूचना विज्ञान केन्‍द्र, हैदराबाद के सहयोग से इस वेब पोर्टल का समन्‍वय एवं रख रखाव कर रहें हैं।

  • स्‍वास्‍थ्‍य सेवा की व्यापक गतिविधियां:
    • आदिवासी स्‍वास्‍थ्‍य सेवा अनुसंधान कार्यक्रम:

यह कार्यक्रम आदिवासी उप योजना (टीएसपी) के अंतर्गत कार्यान्वित किया गया है एवं आदिवासी लोगों को स्‍वास्थ्‍य सेवा सुविधाएं प्रदान करने हेतु सीसीआरएएस के 16 संस्‍थानों के माध्‍यम से 16 राज्‍यों में सेवाओं का विस्‍तार किया गया है। आदिवासी स्‍वास्‍थ्‍य सेवा अनुसंधान के अंतर्गत 1003 गावों की कुल 8,42,959 जनसंख्‍या को सेवाएं प्रदान की गई है।

  • स्‍वास्‍थ्य रक्षण कार्यक्रम:

यह कार्यक्रम सीसीआरएएस के 21 संस्‍थानों के माध्‍यम से 19 राज्‍यों में प्रारंभ किया गया है। इस कार्यक्रम के माध्‍यम से चयनित राज्‍यों के 5 कॉलोनि‍यों/गाँवों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवा सुविधाएं एवं जागरूकता प्रदान की जाएगी।

  • अनुसूचित जाति उप योजना (एससीएसपी) के अंतर्गत आयुर्वेद मोबाइल स्‍वास्थ्‍य सेवा कार्यक्रम:

यह कार्यक्रम सीसीआरएएस के 20 संस्‍थानों के माध्‍यम से 18 राज्‍यों में प्रारंभ किया गया है। इस कार्यक्रम के माध्‍यम से अनुसूचित जाति वाले क्षेत्रों में घर-घर तक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा सुविधाएं प्रदान की जाऐंगी।

  • एनपीसीडीसीएस कार्यक्रम:

कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग एवं आघात (स्‍ट्रोक) के रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु राष्‍ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के साथ आयुष (आयुर्वेद) के एकीकरण का कार्य सीसीआरएएस (आयुष मंत्रालय) और डीजीएचएस (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय) भारत सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत असंक्रमिक रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए तीन राज्‍यों के चयनित तीन जिलों यथा- भीलवाड़ा (राजस्‍थान), सुरेन्‍दरनगर (गुजरात) एवं गया (बिहार) में कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।